सोमवार, जून 14, 2010

पा लिया
























जी भर कर जब देखा तुम्हे
तुम वही लगे
कुछ मेरे अपने कुछ पराये
कुछ जाने कुछ अनजाने
कुछ सोचे कुछ समझे
कुछ प्यारे कुछ पुकारे

अब जब तुम नहीं हो
मेरे सामने न होते हुए भी मेरे हो
एकदम अपने
मानो मेरे अन्दर बसे
कुछ उलझे कुछ उलझाते
कुछ सुलझे कुछ सुलझाते

आज भी तुम उतने ही करीबी हो
मेरे अन्दर सांस लेते
मेरी आँखों में बसे
मेरे होठों पर मुस्काते
मेरे स्पर्श में बसे

मेरी हर धड़कन में बसे
मेरी हर सांस में समाये
हाँ तुम ही वो
जिसे मैंने ढूंढा
आखिरकार पा भी लिया



10 टिप्‍पणियां:

sanu shukla ने कहा…

मेरी हर धड़कन में बसे
मेरी हर सांस में समाये
हाँ तुम ही वो
जिसे मैंने ढूंढा
आखिरकार पा भी लिया
sundar bhav hai..

Unknown ने कहा…

नमस्ते,

आपका बलोग पढकर अच्चा लगा । आपके चिट्ठों को इंडलि में शामिल करने से अन्य कयी चिट्ठाकारों के सम्पर्क में आने की सम्भावना ज़्यादा हैं । एक बार इंडलि देखने से आपको भी यकीन हो जायेगा ।

36solutions ने कहा…

अच्‍छी कविता के लिए धन्‍यवाद. चित्र तो लाजवाब है.

Udan Tashtari ने कहा…

सुन्दर रचना!

arvind ने कहा…

मेरी हर धड़कन में बसे
मेरी हर सांस में समाये
हाँ तुम ही वो
जिसे मैंने ढूंढा
आखिरकार पा भी लिया
...अच्‍छी कविता के लिए धन्‍यवाद

shilpi ranjan prashant ने कहा…

पाने की चाहत...खोने का दर्द...एक कशिश...एक तड़प...बह जाने की तमन्ना...डूब जाने की ख्वाहिश...सब कुछ समेट लिया है इन शब्दों में। बेहतरीन रचना।

abhi ने कहा…

वाह जी :)

बेनामी ने कहा…

mai bahut khus hun.

kathan ने कहा…

chitr aur kavita dono milkar bahut khubshurat bhav prastut karte hain.....

anita ने कहा…

रिश्तों की ज़ंजीर तोड़ मत
तू भी उसकी एक कड़ी है

आपा-धापी मारा-मारी
तेरे-uske बीच खड़ी है

आईने से लगता है डर
उसमें तो तसवीर जड़ी है

अपने भी बेगाने-से हैं
सब दुनिया उजड़ी-उजड़ी है

कल तक लगा पराया था जो
आज उसी से आँख लड़ी है