
जी भर कर जब देखा तुम्हे
तुम वही लगे
कुछ मेरे अपने कुछ पराये
कुछ जाने कुछ अनजाने
कुछ सोचे कुछ समझे
कुछ प्यारे कुछ पुकारे
अब जब तुम नहीं हो
मेरे सामने न होते हुए भी मेरे हो
एकदम अपने
मानो मेरे अन्दर बसे
कुछ उलझे कुछ उलझाते
कुछ सुलझे कुछ सुलझाते
आज भी तुम उतने ही करीबी हो
मेरे अन्दर सांस लेते
मेरी आँखों में बसे
मेरे होठों पर मुस्काते
मेरे स्पर्श में बसे
मेरी हर धड़कन में बसे
मेरी हर सांस में समाये
हाँ तुम ही वो
जिसे मैंने ढूंढा
आखिरकार पा भी लिया
10 टिप्पणियां:
मेरी हर धड़कन में बसे
मेरी हर सांस में समाये
हाँ तुम ही वो
जिसे मैंने ढूंढा
आखिरकार पा भी लिया
sundar bhav hai..
नमस्ते,
आपका बलोग पढकर अच्चा लगा । आपके चिट्ठों को इंडलि में शामिल करने से अन्य कयी चिट्ठाकारों के सम्पर्क में आने की सम्भावना ज़्यादा हैं । एक बार इंडलि देखने से आपको भी यकीन हो जायेगा ।
अच्छी कविता के लिए धन्यवाद. चित्र तो लाजवाब है.
सुन्दर रचना!
मेरी हर धड़कन में बसे
मेरी हर सांस में समाये
हाँ तुम ही वो
जिसे मैंने ढूंढा
आखिरकार पा भी लिया
...अच्छी कविता के लिए धन्यवाद
पाने की चाहत...खोने का दर्द...एक कशिश...एक तड़प...बह जाने की तमन्ना...डूब जाने की ख्वाहिश...सब कुछ समेट लिया है इन शब्दों में। बेहतरीन रचना।
वाह जी :)
mai bahut khus hun.
chitr aur kavita dono milkar bahut khubshurat bhav prastut karte hain.....
रिश्तों की ज़ंजीर तोड़ मत
तू भी उसकी एक कड़ी है
आपा-धापी मारा-मारी
तेरे-uske बीच खड़ी है
आईने से लगता है डर
उसमें तो तसवीर जड़ी है
अपने भी बेगाने-से हैं
सब दुनिया उजड़ी-उजड़ी है
कल तक लगा पराया था जो
आज उसी से आँख लड़ी है
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