सोमवार, जून 14, 2010

पा लिया
























जी भर कर जब देखा तुम्हे
तुम वही लगे
कुछ मेरे अपने कुछ पराये
कुछ जाने कुछ अनजाने
कुछ सोचे कुछ समझे
कुछ प्यारे कुछ पुकारे

अब जब तुम नहीं हो
मेरे सामने न होते हुए भी मेरे हो
एकदम अपने
मानो मेरे अन्दर बसे
कुछ उलझे कुछ उलझाते
कुछ सुलझे कुछ सुलझाते

आज भी तुम उतने ही करीबी हो
मेरे अन्दर सांस लेते
मेरी आँखों में बसे
मेरे होठों पर मुस्काते
मेरे स्पर्श में बसे

मेरी हर धड़कन में बसे
मेरी हर सांस में समाये
हाँ तुम ही वो
जिसे मैंने ढूंढा
आखिरकार पा भी लिया



शनिवार, जून 12, 2010

प्यार क्या है


प्यार क्या है? मैंने खुद से यह सवाल कई बार पूछा है. मन में कई जवाब आते भी हैं. कभी लगा प्यार पाना है तो कभी लगा की प्यार देना है. कभी लगा की प्यार छोड़ देना है. आपका होगा तो वापस आयेगा जरुर. आता भी है. लेकिन फिर चला जाता है. इस प्यार को क्या कहेंगे? ये कैसा प्यार है जो आता है और फिर चला जाता है? कहते हैं फुल की खुशबु की तरह प्यार होता है. तो कुछ लोग कहते हैं की प्यार जादुई होता है. पर मैंने जिस प्यार को महसूस किया है, वो अजीबोगरीब किस्म का है. मन में बेचैनी जगा जाता है और फिर छोड़ जाता है अकेले सुबकने के लिए. तब मन में आता है की इस प्यार को क्या कहें, क्या नाम दे? जो आपको छोड़ जाता है सुबकने के लिए, लड़ने के लिए.
प्यार, ये हमे जीना भी सिखाता है आपके अपनों के लिए. उन्हें खुश देखने के लिए, उन्हें प्यार करने के लिए. मैंने शिद्दती प्यार को महसूस किया है, जो आता है दुबारा तो फिर जाने का नाम नहीं लेता. नश्तर की तरह चुभ जाता है आपके अन्दर. तीस्त्ता रहता है पल-पल हर क्षण. कष्ट देता है और ख़ुशी भी. सोचने पर महसूस होता है की प्यार कितना खुबसूरत होता है. तो कभी लगता है प्यार कितना कष्टदायक होता है. पर प्यार तो वही है तो जो आपको हिम्मत दे, जूनून दे. कुछ पाने का जूनून, किसी को चाहने का जूनून. और वो प्यार ही किस काम का जो आपमें जूनून न पैदा करे. जो आपको लड़ने पर उतारू न कर दे, अपनी किस्मत से, अपनी परिस्थितियों से. प्यार तो उस रस्ते की तरह है जिस पर आप चलते हैं तो उस छोटे गड्ढे को नहीं याद रखते जो रस्ते में आता है. बल्कि पुरे रास्ते को याद करते हैं और खुश होते हैं की ये रास्ता बहुत प्यारा है, आखिर आपकी जिंदगी का प्यार जो साथ है.

शुक्रवार, जून 11, 2010

घाव मेरे भी हैं


तुम वो नहीं जिसे मैंने चाहा था
तुम वो नहीं जिसे मैंने पूजा था
मैं तो कभी निकल ही नहीं पायी
उन लम्हों से
उन बातों से
अन्दर तक कही गहरे
घाव मेरे भी हैं
नहीं दिखाया तुम्हे
उम्मीद थी के घाव भर जायेंगे
अब जब उम्मीद की
तुमने मेरे घाव हरे कर दिए
तोड़ डाला मुझे
एक बार फिर
दुबारा
और कहते हो
हिम्मत नहीं है
अरे तुम सच में हो कायर
तुम्हारे अपने तुम्हारे नहीं
वो जब कल होंगे व्यस्त
तब तुम क्या करोगे
उनके बच्चो की नेप्पी साफ़ करोगे
कहते फिरोगे मैंने तो कईयों को जिलाया है
अपना घर होम कर

शुक्रवार, जून 04, 2010

मैं ही हू...



























ज़ी हा...
फिर से मैं ही हू...
आती जाती...
गुनगुनाती...
इठलाती...
रोती गाती हंसती और हंसाती...
वो दिन जो थे मेरे...
जो थे हमारे...
कही हैं अब भी
मेरे अन्दर दहकते...
दह्काते मचलते...