गुरुवार, मई 31, 2012

विशेषण नहीं




प्रेम कोई गुल्लक नहीं
फोड़कर जिससे निकाल लूं सिक्के
ना ही कोई अलादीन का खजाना
जो बंद पड़ा हो किसी के इंतजार में


प्रेम पसीने की तरह है
जितना भी बहे 
कम ही है
उधार नहीं ले सकते इसे
ना ही किसी को दे सकते हैं उपहार 


प्रेम राह में भटक रहे 
यात्री की यात्रा 
टिकट लो या ना लो
मंजिल की खोज तो है ही


प्रेम ना ही वीरानगी है
ना सूखा, ना बाढ़
ना ही आंधी या तूफान
कुछ भी तो नहीं


कोई संज्ञा नहीं
कोई विशेषण नहीं
ना ही कोई उपनाम
दे दो चाहे जितने नाम


प्रेम बस एक हूक
सिर्फ एक सुखद कराह
हाथ की उंगलियों सा 
थाम ले जो सब कुछ

मंगलवार, मई 22, 2012

आज ही तो है


तुम्हें चिढ़ाना

चांद को आजमाना

बस कल की ही बात तो है





यूं ही रूठना और बिगड़ जाना

हंसी को थाम लेना
उंगलियों को फोड़ लेना
और हां,
नाखूनों को नेलकटर से काटना
आज ही तो है





कभी हंसी की लहर

तो कभी गुदगुदी का मंजर
होंठ पर तिरछी मुस्कान
दरवाजे का धीमे से किरियाते हुए
बोलना चींचींचीं
एकदम वही सब कुछ
जैसा तुम्हारे साथ है
जैसा मेरे साथ है
बस और कोई एवज नहीं
कोई और राह नहीं





बस में चलते जाना

पसीने की गंध
धकियाते हुए उतर जाना
नुक्कड़ पर ऑटो में
उस चेहरे को थाम लेना





कभी आजमाना तो कभी इतराना

सब कुछ आज का ही तो है
कभी डर से आम खा लेना
कभी तकरार में छिप जाना
सब आज ही तो है