शनिवार, अक्तूबर 08, 2011

. थाली का प्यार


उसने एक बार फिर मुड़ कर देखा पर वो वहाँ नहीं था. वहाँ थी तो सिर्फ वीरानगी और मुट्ठी भर धूप. मुट्ठी भर धूप जो उसे आगे बढ़ने का इशारा कर रही थी. धूप भी तो जीवन में कई बार आती है. आती है और आपको उजास दे जाती है. ऐसी उजास जो जीने की ललक पैदा कर दे आपके अन्दर. पर जीने की ललक आखिर क्यों. जीवन सुंदर है, सब मानते हैं. है भी. और नहीं भी. जो रहता है एक बार, जरुरी नहीं हर बार रहे. जो बीतता है एक बार, जरुरी नहीं की हर बार बीते. लेकिन जो सच है, वो तो नहीं बदलता. बदलता है तो सिर्फ किरदार, सिर्फ चेहरे. जोकेरे से दिखने वाले हम, कई चेहरे हैं एक चेहरे के पीछे. कुछ लाल तो कुछ पीले. कुछ नीले तो कुछ हरे. एक ही चेहरे के पीछे कई चेहरे.
चेहरा, जीवन का बड़ा सच बताता है. इस जोकरनुमा चेहरे के लिए ये जीवन. या जीवन के लिए ये जोकरनुमा चेहरा. हाथ हैं कि बस चलते जाते हैं, ठीक उसी तरह जैसे मुंह चलता जाता है. यही मुंह कई बार कुछ नहीं बोलता. सिर्फ हिलता रहता है. कभी पैसों के लिए तो कभी जीवन की सचाइयों से भागने के लिए. बारिश भी कभी होती जाती है तो कभी थम सी जाती है. थमती नहीं है, सिर्फ थमने का एहसास सा देती है. मानो जीवन का यथार्थ बता रही हो. यथार्थ जो सत्य से परे नहीं, सत्य है.
ऐसा सत्य, जो ना जीने देता है और ना मरने. नींद भी ऐसी है कि बस जाती है या आने का नाटक करती है. नाटक, सब नाटक ही तो है. तो सत्य क्या है. प्यार छद्म है. इर्ष्या छद्म है. प्यार कभी होता है एक थाली में तो कभी उसी थाली में नहीं होता. गिर जाता है कहीं दूर. इतनी दूर कि उसे लाना मुश्किल हो जाता है. मुश्किल ही तो है सब. आसन हो तो सब जी ना ले ख़ुशी से.
माँ, बहुत याद आती है. हालांकि बचपन कि कोई भी ऐसी बात याद नहीं जब उसकी गोद में सर रखा हो. लड़ाई तो अब भी सबसे ज्यादा उससे ही होती है. पर माँ, वो भले ही मुंह फूला ले लेकिन बाद में अपनी बातों से बच्चे को बिना गले लगाये ही पुचकार लेती है. उसे आगे बढ़ने की राह दिखाती है, कई बार मजबूर भी करती है. सूरज के लिए तो कभी चाँद के लिए. सूरज जो गर्मी का एहसास तो देते हैं पर ज्यादा पास जाने से जला भी देते हैं. और चाँद भी, शीतलता की पुचकार देने के साथ ही ठण्ड से कंपकंपा देता है.
गर्मी और शीतलता का ये खेल बचपन में कभी नहीं देखती गुड़िया. गुड्डे गुड़िया के किस्से कहानियों में सब सुखद ही होता है. यही खेल जब जीवन बनता है तो गुड़िया कब की पुरानी हो जाती है. जी लेती है. जीने को मजबूर की जाती है. कभी कोई उसे खेलता है तो कभी कोई. लाल-गुलाबी कपडे और कहानियाँ सुना कर.