शुक्रवार, जुलाई 16, 2010

मैं खुश हूँ...



खुशनुमा एहसास
खुशनुमा प्यार
अजनबी सा बिलकुल नहीं
मेरा अपना संजोया संव्राया

भले ही छूट गए तुम
सशरीर
लेकिन आत्मा मेरी
तुम्हारे साथ रही

वही तुम्हारे अन्दर
तुम्हारे मन में बसी बसाई
अब जब तुम हो सशरीर भी
तो मेरे कण कण में तुम
मेरी उँगलियों में
मेरे होठों पर
मेरे गालों पर
दौड़ती तुम्हारी भाषा
तुम्हारी छूवन
तुम्हारे बोल
तुम्हारा स्पर्श...