शुक्रवार, जून 11, 2010

घाव मेरे भी हैं


तुम वो नहीं जिसे मैंने चाहा था
तुम वो नहीं जिसे मैंने पूजा था
मैं तो कभी निकल ही नहीं पायी
उन लम्हों से
उन बातों से
अन्दर तक कही गहरे
घाव मेरे भी हैं
नहीं दिखाया तुम्हे
उम्मीद थी के घाव भर जायेंगे
अब जब उम्मीद की
तुमने मेरे घाव हरे कर दिए
तोड़ डाला मुझे
एक बार फिर
दुबारा
और कहते हो
हिम्मत नहीं है
अरे तुम सच में हो कायर
तुम्हारे अपने तुम्हारे नहीं
वो जब कल होंगे व्यस्त
तब तुम क्या करोगे
उनके बच्चो की नेप्पी साफ़ करोगे
कहते फिरोगे मैंने तो कईयों को जिलाया है
अपना घर होम कर

8 टिप्‍पणियां:

Anamikaghatak ने कहा…

EK ACHCHA PRAYOGVADI KAVITA.........

Anamikaghatak ने कहा…

apne post se word varification hata de

Udan Tashtari ने कहा…

शानदार!

शोभा ने कहा…

अति सुन्दर।

Shekhar Kumawat ने कहा…

वाह बहुत सुन्दर लिखा है।

ANU CHAUHAN ने कहा…

JAB HAM BURE DIN JHELTE HAI USKE BAAD HI HAM USKO LIKHNE ME NAYAYE KAR PATE HAI. TUMHARI KAVITA SE SAAF DIKH RAHA HAI KI TUMNE KI PALO ME IS KAVITA KO LIKHA..BHUT AACHI SE JADA DIL KO ANDAR TAK JANJHOR DENE VALI HAI....LIKHTI RAHI ..AACHA LAGA..

बेनामी ने कहा…

i loved it.......i think i can relate with it somewhere......beautiful poem by a true talent i must say.

http://anusamvedna.blogspot.com ने कहा…

बहुत सुंदर कविता ....