
तुम नहीं थे
मंद बहती बयार में
तेज चलते अंधड़ में
न तो उस आइसक्रीम में
जो तुमने मुझे दी थी खाने
एक बार नहीं कई-कई बार
तुम वहाँ भी नहीं थे
जिसे मैंने सबसे अपना माना
जहां मैं कई-कई बार जाती हूँ
देखती हूँ उस रास्ते पर
जहां तुम मुझे रिदा छोड़ गए थे
उन गलियों में जहां तुमने
पिलाई थी मुझे
अपने वे मीठे बोल
वह हंसी
जो देर तक अब तक
गूंजती रहती है मेरे कानों में
तुम नहीं हो
वहाँ जो मेरा शरीर है
जहां तुम्हारी अनुभूति है
जहां तुमने कभी स्पर्श किया था
तुम्हारी वो हलकी छुवन
मेरे गालों पर अब भी बसी
तुम क्यों नहीं हो वहाँ
जहां मेरी साँसे होकर भी नहीं हैं
मेरे आंसू हैं जहां
मेरे थरथराते होंठ
कापते हाथ पर
जहां अब भी तुम्हारा स्पर्श है
15 टिप्पणियां:
वाह क्या कविता है ..................
hey boss great....
सुंदर मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति।
बेहद मर्मस्पर्शी कविता है। दर्द का सैलाब जैसे हर शब्द से उमड़ रहा हो.... लेकिन क्यों???
aisi abhivyakti ki ummid thi hame aapse! kripya aur likhen. doston par aabhar hoga.
Pritu
उदास नहीं होते बाबू . . . आइसक्रीम हम भी खिला देंगे.. कई-कई बार..प्रीतु
sangati ka asar bahut tezi se ho raha hai aap par...
yaar tum to kavita bhut aachi likhti ho. hamko pashand aai.
yaar tum to kavita bhut achi likhti ho...likhti raho..
सहज सुंदर शब्दों में एक मोहक कविता मैम।
प्रितु की टिप्पणी पे मुस्कुरा रहा हूँ... :-)
और ये word verification हटा क्यों नहीं देतीं?
it doesn't solve any problem, rather discourages your readers to comment...
जहां मेरी साँसे होकर भी नहीं हैं...
lovely line....
NICE POEM......... sabaki tippaniya majedar hain.
I am not a poet to express my feelings in a different way like they do. Just I can say that this is mindblowing. Very touchy. Great!!! Keep it up. will wait for your next poetry.......
एक टिप्पणी भेजें