गुरुवार, दिसंबर 09, 2010

सिंदूरी आभा






























टूटन क्या होता है...
मैं जानती हूँ...
तुम जानते हो शायद...
अब ये टूटन न हो..
अब ये बिखराव न हो...
बस यही कामना...
यही चाहत...
और कुछ नहीं...
तुम मुझे चाहो...
मैं तुम्हे चाहूँ...
जीवन यही तो है...
मंगलमय और सुंदर....
थोड़ी नोक झोक....
थोड़ी मनुहार...
थोड़ा दुलार...
मुझे मेरे पति का, जो तुम हो...
तुम्हे तुम्हारी पत्नी का, जो मैं हूँ...
सिंदूरी आभा सा प्यार...
दूर तक गहराता...

3 टिप्‍पणियां:

arvind ने कहा…

तुम मुझे चाहो...
मैं तुम्हे चाहूँ...
जीवन यही तो है...
मंगलमय और सुंदर....vaah...bahut khoob.

abhi ने कहा…

खूबसूरत कविता

amar jeet ने कहा…

सिंदूरी आभा सा प्यार...
दूर तक गहराता..
अच्छी रचना