सोमवार, अप्रैल 05, 2010

लहरें


कई बार मन में ख्याल उपजते हैं और फिर गुम भी हो जाते हैं। सोचती हूं कई बार और कई बार जूझती हूं। आखिर ये ख्याल आते ही क्यों हैं? और क्यों आकर मुझे विचलित कर जाते हैं। जीवन की सचाइयों से मैंने काफी कुछ सीखा है, वो भी काफी कम उम्र में। जिस उम्र में लड़कियां खिलखिलाती हैं, बचपने में रहती हैं, उस उम्र में मैंने अपनी खिलखिलाहट खो दी। एसा नहीं है कि मैंने अपनी खिलखिलाहट को बचाने की कोशिश नहीं की। एसा भी नहीं है कि मैं उलझती चली गई। उलझी जरूर लेकिन उससे निकलने का रास्ता भी मैंने ही ढूंढा। रात-रात भर खुद से सवाल पूछती रही कि मैं ही क्यों? जवाब मिले कई बार और कई दफा नहीं भी मिले। मिला तो दूर तक दिखता रास्ता, जिस पर मुझे कोई नहीं दिख रहा था।

मुझे हमेशा से एडवेंचर पसंद रहा है। दूर घुमावदार पहाड़ों तक निकल जाना या फिर आसमान को छूती पहाड़ियों तक पहुंचना। उससे भी ज्यादा पसंद रहा है समुद्र में खो जाना। समुद्र की गहराइयां मुझे खींचती हैं अपनी आ॓र। लगता है मानो मेरा कुछ हो वहां। जाना चाहती थी वहां, छूकर महसूस करना चाहती थी। आखिर कुछ तो है मेरा वहां। गई भी, मिला भी। पर रहा नहीं मेरे पास। मुझे छूकर निकल गया, बिल्कुल उसी तरह जैसे पानी हाथ को छूकर निकल जाता है। जैसे समुद्र किनारे पर आकर फिर लौट जाता है। किनारे पर चाहे जो भी लिख लो, आती लहरें उसे लेकर लौट ही जाती हैं।

लहरें, इनसे मेरा नाता पुराना रहा है। खूबसूरत लहरें, संगीतमय लहरें, उलझी सी सुलझी लहरें। कुछ दिन पहले ही पुरी जाना हुआ। लहरों से साक्षात्कार हुआ। लगा मानो मेरी पुरानी जान-पहचान हो। छूकर देखना चाहा, उसे अपनी गोद में समा लेना चाहा। पर लहरें कहां थमने वाली। हथेली में आईं, उंगलियों के पोरों से होते हुए मुझे छोड़कर निकल पड़ीं। मुझे रिदा कर गईं। पर मैं हार मानने वालों में नहीं हूं। मैं अकेले रास्ते पर चलने वालों में नहीं हूं। मुझमें इतनी कूवत है कि मैं निकल सकूं इसी रास्ते पर बिना झिझके, बिना ठहरे।

1 टिप्पणी:

नरेश सोनी ने कहा…

चिट्ठाजगत में चंद पंक्तियां पढ़ने के बाद आपका ब्लाग देखा। आपने जो कुछ भी लिखा है, वह पढ़ने में नहीं आ पा रहा है। दरअसल, शब्दों की जगह गोलाकार (मसलन 000000) दिखते हैं। संभवतः यही कारण है कि आपकी पोस्ट को टिप्पणियां नहीं मिल पा रही है। अपने ब्लॉग को पाठकों से जोड़ने के लिए आपको सही फॉट का उपयोग करना होगा। तभी उसे पाठक मिल पाएंगे। चिट्ठाजगत में थोड़ा-सा पढ़ने को मिला, अच्छा लगा। शुभकामनाएं।