शनिवार, अप्रैल 03, 2010

जायका बदल कर देखें


मेरी सहेली गीता ने ये कविता लिखी, जो मुझे बेहद पसंद आई.
पढ़ते के साथ मन में आया क्यों न इसे अपने ब्लॉग पर प्रेषित कर दूँ।


ये स्क्रिप्टेड,
हमारी तुम्हारी ज़िन्दगी
फाईव स्टार होटल सी
आज थोडा मेनू बदल कर देखें
अचार के साथ भर कर भात हो
पीली वाली दाल, अरहर की
एक के उपर एक चढ़ी दीवारों से निकल कर
थोडा जायका बदल कर देखें
बिल्डिंग में हमारी बहस टकराकर तितली होती
काओं काओं के अभ्यास से दूर
मेरे तुम्हारे में चाय सुडकने कि सनक तो रह जाये
वो भी कहीं टिप टिप के शोर में न दब जाये
टिक टिक पर चलने वाले हो गए
हम सब और सभी तो ऐसे होते जा रहे हैं
नमक मिर्च कम ज़यादा कर लेने में आपका मेरा क्या जाता है
एक बार आजमा लेते हैं

1 टिप्पणी:

Shilpi Ranjan Prashant ने कहा…

बहूत खूब लिखा गया है।