सोमवार, फ़रवरी 08, 2010

फिल्म प्रमोशन का भावनात्मक खेल




खुद को विजेता सिद्ध करने की होड़ कलाकारों में इस कदर बढ़ गई है कि जनता के साथ भावनात्मक खेल खेलना उन्हें किसी भी लिहाज से गलत नहीं लगता। एक रपट-
शाहरूख खान हमेशा चर्चा में रहते हैं। इन दिनों वह मराठी-गैर मराठी के विवाद में फंसे हैं। हालांकि शाहरूख का यह कदम बिल्कुल उचित है। इन दिनों वह अपनी फिल्म ‘माई नेम इज खान’ को लेकर भी चर्चा में हैं। यह फिल्म 12 फरवरी को रिलीज होने जा रही है। फिल्म की झलकियां चैनलों पर लगातार दिखाई जा रही हैं। दिखाया जा रहा है कि किस तरह खान सरनेम होने की वजह से फिल्म के मुख्य किरदार रिजवान खान की तलाशी ए यरपोर्ट पर ली जाती है। यूं तो यह कोई बड़ी बात नहीं। कई फिल्मों में इस तरह के दृश्य दिखाए जा चुके हैं। लेकिन यह अपने आपमें खास है। खास इसलिए कि बॉलीवुड के किंग खान ने कुछ महीनों पहले हंगामा मचा दिया था कि अमेरिकी एयरपोर्ट पर पूछताछ के लिए उन्हें घंटों रोक कर रखा गया। मीडिया में इस पर बहस चली। बात यहीं खत्म नहीं हुई। संसद की दीवारों के कान तम यह खबर पहुंची। सभी इस मुद्दे पर जूझते दिखाई दिए । करण जौर से लेकर जूही चावला, सबने इस मुद्दे पर अपनी नाखुशी दर्शाई। अब जब, फिल्म के प्रोमोज दिखाए जा चुके हैं, जनता बेचारी खुद को ठगी महसूस कर रही है।


इन सबके बीच विजेता निकले शाहरूख। उन्होंने अपनी फिल्मों को लेकर जो हाइप बनानी चाही थी, उसमें सफल हुए । अब भले ही जनता कुछ भी महसूस करे। इससे उन्हें क्या? फिल्मों का प्रमोशन तो कलाकार पहले से करते आए हैं। इंटरव्यू देने से लेकर फिल्म से संबंधित चीजें दर्शकों को बांटना, सिनेमाहॉल की खिड़की पर बैठकर टिकटें बेचना, यह सब अब पुराना फलसफा रह गया है। भारी प्रतियोगिता के बीच कुछ नया कर दिखाने की चाह, सबके बीच खुद को विजेता साबित करने की होड़ ने कलाकारों को बदल कर रख दिया है। अब वे समझने लगे हैं कि यदि उन्हें जीत हासिल करनी है तो आम जनता के बीच जाना होगा। चलो, यह तो फिर भी ठीक है। लेकिन जनता की भावनाओं के साथ खेलना, यह कहां तक उचित है? लेकिन इन दिनों ‘ब्रिलियंट’, ‘परफेक्शनिस्ट’ और ‘सक्सेफुल’ जैसी उपाधियों से नवाजे जा रहे कलाकार ए ेसा ही कर रहे हैं। उन्हें इससे फर्क नहीं पड़ता कि जनता क्या सोचा रही है, वो क्या चाह रही है या उनकी ए ेसी हरकतों से उन पर क्या असर पह़ेगा। उन्हें तो फिक्र है केवल खुद की, अपनी जीत की।

आमिर की फिल्म ‘थ्री इडियट्स’ सिंगल स्क्रीन के साथ मल्टीप्लेक्स में बेहतरीन व्यापार कर रही है। लोगों को फिल्म पसंद भी आई। लेकिन इसे दर्शकों तक पहुंचाने में आमिर ने बहुत पापड़ बेले। आम जनता के साथ खेल खेला। कभी पहुंच गए वाराणसी तो कभी चंदेरी। जनता की आंखों में आंसू लाने के लिए अपनी मां के पुराने घर वाराणसी वेश बदलकर पहुंचे। ऑटो वाले को सोने की अंगूठी तक दी। उनकी ‘भलमनसहत’ यहीं खत्म नहीं हुई। अपने दो सप्ताह के टूर के दरम्यान वह मध्य प्रदेश के चंदेरी जिला भी जा पहुंचे। वो भी अकेले नहीं। करीना कपूर के साथ। चंदेरी हैंडलूम टेक्सटाइल बुनाई के लिए मशहूर है, जो अब अंतिम सांसें ले रही है। दोनों कुछ बुनकरों से मिले और उनसे वादा किया कि वे चंदेरी को बचाए ंगे। उस छोटे गांव में दोनों ने रात भी बिताई। यही नहीं, करीना ने तो उनकी बुनी साड़ी भी पहनी। अहमदाबाद के छोटे गांधीवादी स्कूल में प्रिंसिपल, शिक्षक, चपरासी और ए क विघार्थी को आमिर ने मुंबई में प्रीमियर पर आमंत्रित किया। उन्हें हवाई टिकटें तक भेजीं। अब समझ में यह नहीं आता कि आमिर को चंदेरी कला को बचाने का सपना अपनी फिल्म के प्रमोशन के मौके पर ही क्यों याद आया? उन्हें चपरासी की याद इसी समय क्यों आई? क्या यह खुद को विजेता साबित करने की कवायद नहीं?

आमिर का यह खेल ‘गजनी’ के दौरान भी चला था। जब गजनी हेयरकट देने के लिए वह शहरों में जा पहुंचे। सड़क किनारे सैलून खोल जनता के बाल कतरने उन्होंने शुरू कर दिए थे। जनता भी भावुक ही ठहरी, अपने स्टार की ए क झलक पाने और उसके हाथों बाल कटवाने जा पहुंची। भले ही वो हेयरस्टाइल सिर्फ नाम का ही हेयरस्टाइल हो। उसमें सिर पर बाल बचे ही कहां थे? प्रीमियर पार्टी में बुलाने का स्वांग तो शाहरूख खान ने भी रचा था। अपनी फिल्म ‘बिल्लू’ के प्रीमियर के मौके पर उन्होंने कुछ नाइयों को सपत्नी आमंत्रण भेजा था। इन सबके बीच जनता के सामने हाथ जोड़ने वाले अमिताभ बच्चन को कैसे बख्शा जाना चाहिए ? अपनी फिल्म ‘पा’ को प्रमोट करने के लिए वह स्कूलों में बच्चों को शिक्षा देने जा पहुंचे। वो भी प्रोजेरिया पर। गौरतलब है कि फिल्म में अमिताभ प्रोजेरिया पीड़ित बच्चे की भूमिका में दिखे। लेकिन क्या उन्होंने असल में प्रोजेरिया पीड़ित बच्चों के लिए कुछ किया? बिल्कुल नहीं। बिग बी का प्रमोशन यहीं नहीं थमा। उन्होंने आइडिया टेलीकॉम सर्विसेज के साथ करार किया। इसके अनुसार, खास नंबर पर फोन करने के बाद ऑरो (फिल्म में अमिताभ का नाम) आपको वापस फोन करेगा। बताने की जरूरत नहीं है कि बाद में किए गए फोन टेप किए गए होंगे।

अब 12 फरवरी को ‘माई नेम इज खान’ रिलीज होने जा रही है। कुछ माह पहले अमेरिकी एयरपोर्ट पर जांच को लेकर खासा हंगामा मचा चुके शाहरूख खान जनता की भावनाओं के साथ और कौन सा खेल खेलेंगे, यह तो वही जानें। वह अमिताभ बच्चन और आमिर खान की मार्केटिंग स्ट्रेटेजी को पार कर पाए गे या नहीं? जनता के आंसू बहाने में कामयाब हो पाए ंगे या नहीं? सबसे बड़ी बात, अपने हमकदम आमिर खान को परास्त कर पाए ंगे या नहीं?

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