
दिल का बोझ और
दिमाग का धुंधलापन
अच्छा हुआ उतर गए
शाम के धुंधलके में
आँखों में उमड़ते आंसू
अक्सर यही तो कह जाते हैं
रात को सोयी उनींदी आंखें भी
चुपके से खुलकर यही कहती हैं
चारों ओर क़ी शांति में
भला कोलाहल कैसा
जो मेरे अन्दर घुसता जाता है
बार बार हर बार
थमते नहीं तो बस
मेरे अन्दर की शांति
मेरे अन्दर का उल्लास
हर बार घुमड़ ही जाता है
कुछ अनदेखा, अनचीन्हा
दुनिया की इस भीड़ में
जब उकता कर देखती हूँ
खुद को तो होता है
महसूस कि बदल गया है सब
यहाँ तक कि मेरी उंगलियाँ भी
और इसका स्पर्श भी
दिमाग का धुंधलापन
अच्छा हुआ उतर गए
शाम के धुंधलके में
आँखों में उमड़ते आंसू
अक्सर यही तो कह जाते हैं
रात को सोयी उनींदी आंखें भी
चुपके से खुलकर यही कहती हैं
चारों ओर क़ी शांति में
भला कोलाहल कैसा
जो मेरे अन्दर घुसता जाता है
बार बार हर बार
थमते नहीं तो बस
मेरे अन्दर की शांति
मेरे अन्दर का उल्लास
हर बार घुमड़ ही जाता है
कुछ अनदेखा, अनचीन्हा
दुनिया की इस भीड़ में
जब उकता कर देखती हूँ
खुद को तो होता है
महसूस कि बदल गया है सब
यहाँ तक कि मेरी उंगलियाँ भी
और इसका स्पर्श भी