शुक्रवार, फ़रवरी 05, 2010

भक्ति संगीत - पहचान का संकट




भक्ति का अपना बाजार है, इसी में शामिल है भक्ति संगीत। पिछले कुछ सालों में भक्ति संगीत का बाजार कम होता दिखा है। खासकर बड़े शहरों में, छोटे शहरों में तो भक्ति संगीत का बाजार अभी भी सांसें ले रहा है। हालांकि पिछले कुछ महीनों में इस बाजार में नयी आवाजों का आगाज हुआ है। भक्ति संगीत ने हमेशा नये गायकों को पहचान दी है। उनके करियर को बनाने में मदद की है। यही नहीं, इन गानों के म्यूजिक वीडियो भी अच्छी संख्या में बनते और बेचे जाते हैं। इस क्षेत्र में पहला नाम गुलशन कुमार का ही आता है, जिन्होंने लोगों की इस नब्ज को पकड़ा और ऑडियो के साथ वीडियो अलबम भी लांच करना शुरू किया। कुमार शानू से लेकर सोनू निगम, अनुराधा पौडवाल, उदित नारायण गुलशन कुमार की खोज ही हैं। इन सबने अपने करियर की शुरुआत प्राय: भक्ति गीत गाने से ही किया।
तुलसी कुमार को भले ही लोग गुलशन कुमार की बेटी के तौर पर पहचानते हों। सचाई तो यह है कि तुलसी ने भी अपने करियर की शुरुआत इसी से की। वह अब तक आठ सोलो अलबम कर चुकी हैं और अन्य कई अलबमों में गा चुकी हैं। तुलसी कहती हैं कि मैं अपने पिता की इस इच्छा को कभी खत्म नहीं होने दूंगी। मैं हमेशा फिल्मी गाने से ज्यादा तवज्जो भजन को ही दूंगी। 90 के दशक में भजन अलबम की काफी मांग थी। लेकिन अब यह कम है।
खासकर बड़े शहरों में। छोटे शहरों में तो लोग अब भी वैष्णो देवी और सांई बाबा के भजनों के दीवाने हैं। भक्ति संगीत के क्षेत्र में नया चलन यह देखने को मिल रहा है कि शास्त्रीय गायक अपने करियर की शुरुआत इसी से कर रहे हैं। भक्ति संगीत प्रतियोगिता सोना डिवोशनल म्यूजिक अवार्ड जीतने के बाद शास्त्रीय गायिका विधि शर्मा को रिकॉर्डिंग कांट्रैक्ट मिला है। केवल हमारे देश ही नहीं, बाहर से आए गायक भी भजन गायन में नाम कमाने को आतुर हैं। ऐसा ही नाम सुमीत टप्पू का है। मूलत: फिजी आइलैंड के सुमीत बचपन से ही अनूप जलोटा के मर्गदर्शन में गायिकी सीख रहे हैं। हाल में उन्होंने एक साथ चार अलबम लांच किये हैं। सुमीत इंडस्ट्री में 2003 से हैं लेकिन उन्हें "सांई गीता', "राम दर्शन' जैसे भजन अलबम के जरिए ही पहचान मिली। इनके गुरु अनूप जलोटा कहते हैं कि जब तक हमारे बीच भगवान और त्योहार होंगे, हमारे यहां भक्ति संगीत की मांग बनी रहेगी। वह इस ट्रेंड की ओर गौर करते हुए कहते हैं कि भक्ति संगीत सदा से ही शास्त्रीय संगीत का हिस्सा रहा है। नामी शास्त्रीय गायक हमेशा अपने प्रदर्शन की समाप्ति भजन से ही करते हैं, न कि गजल से। यहां यह बताते चलें कि अनूप जलोटा के भजन अलबम "भजन संध्या' ने 70 के दशक में सुपरहिट फिल्म "शोले' से ज्यादा बिकी थी। पंडित राजन-साजन मिश्रा की शिष्य अभिश्रुति बेजबरूआ देश-विदेश में शास्त्रीय गायन का लाइव प्रदर्शन करती है। उनकी पहचान न के बराबर हैं पर वह मानती हैं कि शास्त्रीय गायन के बलबूते ही लोगों के दिल में जगह नहीं मिलती। इसके लिए सालों तक लगा रहना पड़ता है। वह कहती हैं कि इसका आसान रास्ता भजन गायन है। अभिश्रुति को सोना डिवोशनल म्यूजिक अवार्ड में दूसरा स्थान हासिल हुआ है। दूसरे स्थान पर आने की वजह से उसको अपना अलबम लांच करने का पुरस्कार मिला है।

4 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

bhakti sangeet ke bare m pahle jayada nahi padha . aapke article m achi or rochak jaankari hi. aise hi ache article likhte rehe.

preeti pandey ने कहा…

mam aapne bilkul thik likha,sonu nigam ko hi le lijiye unhone apne career ki shuruaat to bhagwaan ke ashirvaad se ki yaani shuruaat me unhone sirf bhagwaan ke hi bhajan gaaye, lekin ab ve bollywood ki duniya me is kadar ram gaye hai ki bhagwaan ke liye unke pass time hi nahi hai.

मृत्युंजय ने कहा…

आपका यह लेख बिलकुल आज के युग की विडम्बनाओं को रेखांकित करता है
हमारे युग में एक सबसे उदात्त आन्दोलन भक्ति आन्दोलन रहा है. सामाजिक सरोकार का यह सबसे बड़ा यज्ञ था.
इसके बाद ही भक्ति की प्रासंगिता और महत्व जनमानस के भीतर बैठा . आज के समाज में भी इस भक्ति ने कईयों के जीवन को दिशा दी है.
भक्ति गायन जो कभी संस्कार और संस्कृति का पर्याय मन जाता था , आज के इस तथाकथित राकिंग समाज में गौण हो गया है.
आपके इस लेख से खोते जा रहे इस संगीत की विधा के बारे में तो लोग सोचेंगे ही हमारी नयी पीढी को भी अपने दिनचर्या के बारे में मंथन कर सकेंगे .
लेख बेहद उम्दा है.

pyar se pukar lo ने कहा…

good one